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Sunday, October 12, 2014

कुछ ऐसे हादसों में गुज़री है इस तरह उम्र

कुछ ऐसे हादसों में गुज़री है इस तरह उम्र
कि  अब नवाज़िशों से डर  लगता है

तन्हाइयों से इश्क़ कर बैठे हैं  इस तरह  हम
कि  अब महफ़िलों से डर   लगता है

तक़दीर  ने फ़ेरा  है इस तरह से हमारा हर कदम
कि अब तदबीरों  से डर  लगता है

इस तरह से निकले गए हैं तेरे दर से ओ हमकदम
कि  अब मस्जिद मज़ारों  से डर  लगता है

कुछ ऐसी ख्वाहिशों ने तोड़ा  है इस कदर दिल में दम
कि अब मन्नतों दुआओं  से डर  लगता है

किसी ने फेर ली है मुझसे इस कदर मोहब्बत भरी नज़र
कि  अब आइनों से डर  लगता है

मनीषा 

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