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Saturday, June 2, 2012

कविता जन्म लेती है


मन भर आने पर जब बोल अन्दर ही घुटते हैं 
जब निरीह  पीड़ा  से आंसूँ नहीं झरते
तन्हाई में परायी पीर भी जब झकझोर जाती है
और ढलते सूरज के साथ आस की परछाई भी ढल जाती है
तब विवश  मन  में विचार घुमड़ते हैं 
और 
किसी खाली पन्ने की वेदना भरी मरुभूमि पर 
कविता जन्म लेती है

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