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Friday, August 8, 2025

बड़े साहब से अर्ज़ी

 बड़े साहब से अर्ज़ी 

आप हुक्मरान हैं मालिक हैं 

आपकी कलम में बहुत ताकत है साब

एक हस्ताक्षर पर 

कितनी ज़िंदगियां टिकी हैं 

एक गुज़ारिश है साब

कलम को स्याही में डुबोइए 

रक्त में नहीं

दुआ मिलेगी साब 

आह नहीं

कल आपकी कलम ने

कितनी नौकरियां छीन ली

एक आदेश पर कितने घर संकट में आ गए

वो जो आपको गर्म चाय देता है ना हुज़ूर 

उसकी बीबी का आठवां महीना है पहला बच्चा है

अगले माह से बहुत खर्चा है

वो जिसे आप कभी कभार बुला कर 

बंगला साफ करवाते हैं ना 

उसका बेटा  अंग्रेजी स्कूल में है

सपना देखता है रॉकेट बनाने का

उसकी फीस जानी है साब तीन माह की 

आपके दिए कुल 22 हजार में से 

महीने का राशन भी लाना है, किराया भरना है

साब उम्र ज्यादा है उसकी 

आदेश पाने के बाद 

कई रात से  इसी चिंता में सोया नहीं है 

उसे अब कौन नौकरी देगा साब।। 

कई मातहत बहुत दूर से आते हैं

 कोई कोई तो मेरठ से सुबह 6 बजे की स्पेशल से 

ढाई तीन घंटे के सफर से आते हैं 

एक दम टाइम पर दफ्तर 

चाहे तो मशीन देख लीजिए साहिब

छोटा मोटा काम करते हैं सब 

किसी तरह इस बड़े शहर के अहसान तले 

अपने छोटे छोटे सपने पूरे कर रहे हैं

नौकरी ना छीनिए इनकी हुजूर 

उम्र हुए दफ्तर में सेवा करते कहां जाएंगे।


आप बड़े लोग हैं 

बहुत ताकत है आपकी कलम में

बहुत पढ़े लिखे हैं 

क्या जाने कहां आप बम गिरा दें 

कितने लोगों को खाने की पंक्ति में

खड़े खड़े गोली से भुनवा दें 

आज ही कहीं बुलडोजर चलवा दें 

किसी भी परिवार को कब मिट्टी में मिलवा दें

आप पढ़े लिखे प्रतिष्ठित भले मानुस हैं साब 

हम छोटे लोग हैं धरती के कीड़े मकोड़ों जैसे 

हमारा जानते हैं कोई मोल नहीं

इसलिए बस विनती है साब थोड़ा दीन दिखा दें 

आपकी कलम में बहुत ताकत है साब

एक गुज़ारिश है साब

कलम को स्याही में डुबोइए 

रक्त में नहीं

दुआ मिलेगी साब 

आह नहीं


मनीषा वर्मा

#गुफ्तगू

Tuesday, August 5, 2025

तुम सिर्फ स्त्री हो

 सपने मत देखो

सपनों पर पहरे होते हैं।

तुम भूल क्यों जाती हो?,

तुम सिर्फ स्त्री हो

तुम में अपेक्षाएं, महत्त्वकांक्षाऐं

 अच्छी नहीं लगतीं।

तुम चुप बहुत अच्छी लगती हो।

बहुत सुंदर , अपने रूप को संवारो

अरे! नहीं, ये क्या कह गई मैं, 

रुको, ज़रा पूछ लो उस से पहले 

इजाज़त है तुम्हे क्या, संवरने की भी?


नहीं तुम तो विरह वेदना में 

व्याकुल भी नहीं हो सकती 

जाने किस की नज़र पड़ जाए ।

तुम ना चारदीवारी में ही अच्छी हो

ओह! भूल गई वहां भी कहां

नज़र ही तो है वो तो सात परदे भेद कर भी

तुम तक पहुंच जाएगी।

कभी प्रश्न करेगी तो कभी हिंसा

तुम्हे तो इजाज़त नहीं है बोलने की

तुम सुनो, चुप ही अच्छी लगती हो।


तुम बहुत अच्छी लगती हो कविताओं में,

उपन्यासों में, रचनाओं में, यादों में ,

तुम वहीं रहो, बाहर मत निकलना ।

 तुम वहीं अच्छी लगती हो।

सुनो, तुम चुप बहुत अच्छी लगती हो।


मनीषा वर्मा 


#गुफ्तगू