खिड़की से झांकती उस हरी पत्ती पर
ढुलक रही ओस हूँ मैं
गगन पर चमक बिखराते चाँद
से टपक गई ज्योत हूँ मैं
तुम्हारे बिछौने पर पड़े
सफ़ेद तकिये की
नर्म गोद हूँ मैं
स्नेहिल हाथों से जो तुम्हे सहला रही है
उस पवन की सुगँध हूँ मैं
किसी हथेली पर रची
मेहंदी की लाली हूँ मैं
किसी अप्रतिम कवि की कलम से छिटकी
नव रचना हूँ मैं
किसी बिरही की आह से उपजे गान की
लय हूँ मैं
रोज़ शाम को तुम्हारे अधरों पर थिरकते
गाने के बोल हूँ मैं
क्यों खोज रहे हो मुझे तुम
इन पाषाणों के जंगल में
तुम्हारे अंतर में छिपी मधुर मृदु
मादक याद हूँ मैं
1992
1992
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