मुझे चाहिए एक घर
मिलता हो और कोई
एक ही तकिये की खींचा तानी में गुज़रती हो रात
छिपी न हो एक दूसरे से कोई भी बात
अलमारी पर धूल चमकती हो
रोशनदानों से जाले लटकते हों
पर चूल्हे पर प्यार की रोटी सिकती हो
बच्चों के हुल्लड़ से घर गुंजित रहता हो
बहुत मन मुटाव हो फिर भी दिलों में प्यार हो
जिसके आंगनमे उगती हो उषा
और खिड़की से रोज निकलता चाँद हो
मैं तुम्हारा मकान लेकर क्या करूँगी
जहाँ हर किसी का अपना एक कमरा है सुसज्जित
अपने में स्वच्छ और सम्पूर्ण
मुझे तो चाहिए एक घर
वह घर जहाँ
हर कोई एक हाथ की दूरी पर हो
जहाँ पढ़ी हो सबने एक दुसरे के मन की पाती
जहाँ सुबह किसी एक का गुनगुनाया हुआ गीत
सांझ तक हर एक के कंठ मे सजाता हो
उस घर में चाहिए एक आँगन भी
जहाँ रंग बिरंगे पंछी चुगते हो दाना
जहाँ रात में चादर ओढ़ सोता हो कोई
और सुबह उस चादर में लिपटा
एक ही तकिये की खींचा तानी में गुज़रती हो रात
छिपी न हो एक दूसरे से कोई भी बात
अलमारी पर धूल चमकती हो
रोशनदानों से जाले लटकते हों
पर चूल्हे पर प्यार की रोटी सिकती हो
बच्चों के हुल्लड़ से घर गुंजित रहता हो
बहुत मन मुटाव हो फिर भी दिलों में प्यार हो
सब सुख दुःख एक दूसरे से साझे हों
बोलो क्या तुम दे सकते हो मुझे एक ऐसा घर
जिसमे साथ निकलते, सूरज और चाँद हो।।
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