बहुत नेता आज अलग अलग टीवी चैनलों पर संवेदना प्रकट कर रहे हैं। कुछ रो भी रहे हैं, कुछ नाराज़ भी हैं। पर क्या ये काफी है हमारे लिए ? क्या सिर्फ कानून होने से हम सुरक्षित हो सकेंगे?
संवेदना नहीं मुझे अधिकार चाहिए
सडक पर सुरक्षित चलने का अधिकार चाहिए
बेटी ,माँ या देवी की उपाधि नहीं
मुझे मेरे व्यक्तित्व का अहसास चाहिए
पुरुषों से आगे निकलूँ यह अरमान नहीं
कदम से कदम मिला चलने का अधिकार चाहिए
अबला मत कहना मुझे
ना ही दूध और आंसू मेरे कविता में गढ़ना तुम
मेरे आँचल में मुझे जीने का सम्मान चाहिए
मेरे पहनावे पर टिप्पणी नही
तुम्हारी आँखों में शर्म चाहिए मुझे
संवेदना नहीं मुझे अधिकार चाहिए
बहस करो तुम सत्ता के गलियारों में
घोषणा करो तुम मुआवजों की अपने सम्भाषणों में
वादे सख्त कानून के कर दो तुम यूँही लोकसभाओं में
पर सच तो यह है मुझे स्वतंत्रता चाहिए तुम्हारे विषाक्त विचारों से
मुझे स्वछंदता चाहिए तुम्हारेशब्दीय तीर कमानों से
पोसो तुम अपने रक्त को ऐसे की धिक्कारे नही मेरी कोख
मुझे न गोपियों के कृष्ण चाहिए ना सीता के राम चाहिए
न राम का राज्य ना धृतराष्ट्र का दरबार चाहिए
मुझे एक नई परम्परा चाहिए
मुझे नया इतिहास चाहिए
मुझे सिर्फ मेरे अस्तित्व का अहसास चाहिए
मुझे भी जीने का अधिकार चाहिए
संवेदना नहीं मुझे अधिकार चाहिए
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
This is just too good, very well said, I totally empathize
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