यह कुर्सी बहुत प्यारी है
उसे न छोड़ पाऊँगा
सब हथकंडे अपनाऊँगा
तुम आवाज़ उठाना चाहते हो
और क्रांति लाना चाहते हो
तुम शोर बहुत मचाते हो
कभी लगता है मेरी कुर्सी ही
उखाड़ना चाहते हो
बस और नही मैं सह सकता
ये शोर बहुत डिस्टर्बिंग है
मैं सुन नहीं सकता
बहुत समझाया है तुम्हे
तुम नग्न शून्य हो
मेरे लिए केवल कुर्सी का पथ -मार्ग हो
जरा से वोटो की गिनती हो
तुम सोचते हो तुम ही सारी सृष्टी हो
क्या उखाड़ लोगे
थोड़ा झंडा जो फहरा लोगे
और चीख पुकार लोगे
मेरे पास सत्ता है बहुमत है
ये संविधान है
और मेरे पास सौ विधान है
तुम्हारी हर समस्या का जानता हूँ
बस एक निदान है
लाठी बम और गोले बहुतायत में हैं
तुम्हारे संग रोने को अश्रु भी मेरे लालयित हैं
कहो किस बात से मानोगे
पिसोगे रोज़ी की चक्की में
या इस बार सैन्य बल से हारोगे
मेरी कुर्सी बहुत प्रिय है
माफ़ करना तज नही सकता
फिलहाल तुम्हारे लिए
कुछ कर नही सकता
मनीषा
No comments:
Post a Comment