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Friday, December 14, 2012

मैं अभिशप्त हूँ

मैं अभिशप्त हूँ 
जीने के लिए 
पल पल जलने के लिए 
और निरंतर लिखने के लिए 
भीतर कुछ मर सा गया है 
फिर भी विवश हूँ हंसने के लिए 
रोज तन को घसीटती हूँ 
इधर उधर 
और रात होते मर जाती हूँ 
फिर भी विवश हूँ साँस लेने के लिए 
खुद मरती हूँ खुद को जीती हूँ 
रोज़ रोज़ ये प्रसव वेदना मैं  सहती हूँ 
क्योंकि 
मैं अभिशप्त हूँ 
जीने के लिए 
पल पल जलने के लिए 
और निरंतर लिखने के लिए 

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