मैं अभिशप्त हूँ
जीने के लिए
पल पल जलने के लिए
और निरंतर लिखने के लिए
भीतर कुछ मर सा गया है
फिर भी विवश हूँ हंसने के लिए
रोज तन को घसीटती हूँ
इधर उधर
और रात होते मर जाती हूँ
फिर भी विवश हूँ साँस लेने के लिए
खुद मरती हूँ खुद को जीती हूँ
रोज़ रोज़ ये प्रसव वेदना मैं सहती हूँ
क्योंकि
मैं अभिशप्त हूँ
जीने के लिए
पल पल जलने के लिए
और निरंतर लिखने के लिए
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