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Monday, June 6, 2011

सत्ता के गलियारो मे आवाज़ एक सच की गूँजी थी

सत्ता के गलियारो मे
आवाज़ एक सच की गूँजी थी
हर भारतवासी के मन मे
फ़िर से आशा जागी थी
कालाबाज़ारी के खिलाफ़
हर गली मे खिलाफ़त उठी थी
घोटालो मे डूबे हर नेता को
सबक सिखाने की सूझी थी
साथ अन्ना के फ़िर से सच्चाई का परचम लहराने
एक बार फ़िर जनमत ने ठानी थी
हा! धिक्कार तुम्हे जो आज़ाद भारत के नेता हो
अपने मुद्दो मे उलझा कर
तुमने सोती जनता पर अन्धियारे मे वार किया
दिन मे तो आँख ना मिला सके
रात में अत्याचार किया
सच की लड़ाई को पह्चान न सके
कभी बाबा कभी सिब्ब्ल कभी माया बन
अनाचार किया
फ़िर ये परचम लहराएगा
आज तुम्हारा है
कल जनता का भी दिन आएगा
जिन हाथों ने आज तुम्हे सिंहासन है दिया
उन्ही हाथों मे चक्र सुदर्शन भी लहराएगा
आज मूक खड़ी जो तमाशा देख रही है
वो जनता हारी है न समझना
ये भी न समझना कि
जनता सिर्फ़ भोली भाली है
मूल मुद्दे को भुला नही देगी ये
उस दिन बता देगी ये ,जिस दिन जनमत आएगा




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