क्या लिखूं तुम्हे जो छू जाए
काश ! की प्यार मेरा इस लेखनी मे उतर जाए
धड़कनो की स्याही मे डुबो कर कलम
सोचती हुँ कि क्या लिखूँ जो रंग मेरा इन पन्नो पर उतर जाए
दबा के अधरो को रखती हूँ अक्षरों को
कोरे काग़ज़ पर और जानती भी भी हुँ
की बेईमान ये ना जाने क्या तुम्हे कह जाएँ
अपने शब्दो मे पाती हूँ, झलक
हरी घास पर, छितरे पीले फूलों की
और सोचती हूँ आज कही वही याद पन्नो पर उतर पाए
क्या लिखूं जो तुम्हे छू जाए
काश! की प्यार मेरा, लेखनी मे उतर पाए
काश ! की प्यार मेरा इस लेखनी मे उतर जाए
धड़कनो की स्याही मे डुबो कर कलम
सोचती हुँ कि क्या लिखूँ जो रंग मेरा इन पन्नो पर उतर जाए
दबा के अधरो को रखती हूँ अक्षरों को
कोरे काग़ज़ पर और जानती भी भी हुँ
की बेईमान ये ना जाने क्या तुम्हे कह जाएँ
अपने शब्दो मे पाती हूँ, झलक
हरी घास पर, छितरे पीले फूलों की
और सोचती हूँ आज कही वही याद पन्नो पर उतर पाए
क्या लिखूं जो तुम्हे छू जाए
काश! की प्यार मेरा, लेखनी मे उतर पाए
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