वक्त की रेत पर फ़िसलते पाँव,
ज़मीन तलाशते जल रहे हैं
शायद ये जलन नियती हो
या फ़िर कोई संकेत
कि इस रेत की ढलान पर ही
कहीं मिलेगी ठडी छाँव भी
उस असीम प्रेम की
और भर देगी मेरे जीवन मे भी
तृप्ति की शीतलता
तुम आ कर इसी सफ़र में
उठा लोगे इन कदमों को
अपनी मृदु हथेलियों पर
और कर लोगे मुझे
अपने आप मे समाहित्॥
written on 26-04-1999
ज़मीन तलाशते जल रहे हैं
शायद ये जलन नियती हो
या फ़िर कोई संकेत
कि इस रेत की ढलान पर ही
कहीं मिलेगी ठडी छाँव भी
उस असीम प्रेम की
और भर देगी मेरे जीवन मे भी
तृप्ति की शीतलता
तुम आ कर इसी सफ़र में
उठा लोगे इन कदमों को
अपनी मृदु हथेलियों पर
और कर लोगे मुझे
अपने आप मे समाहित्॥
written on 26-04-1999
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