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Saturday, June 11, 2011

सब के बीच का अकेलापन

सब के बीच का अकेलापन
सालता है
जैसे दरखत कोई नग्न खड़ा हो
खुले आस्मां के नीचे
दूर तक बस वीरानगी है
सूरज भी डर के डूब गया हो जैसे
चकोर चुप है इतना सन्नाटा है
आसमां भूल आया हो अपने सितारे जैसे
आज अकेली खड़ी हूँ
त्रिशंकु की त्रासदी भाँपती मै
इक कमज़ोर सी होती डोर
पर पत्ते सी झूलती मै

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