कुमार विश्वास जी कि हर रचना कुछ ऐसे छू जाती है मन को कि अपने आप ही शब्द मन से फ़ूट पड़ते है। उन्हे तो शायद इल्म भी नही होगा कि उनकी रचना किसी को फ़िर से कलम उठाने की प्रेरणा दे जाती है…
रिवायते कुछ दुनिया की कुछ फ़र्ज़ की मजबूरियाँ है
कैसे चलूँ तेरी ताल पर मेरे पैरो के नीचे धरती बिछी है
तू कवि है तेरे तरन्नुम मे सपनो की फ़ुलवारियाँ खिलती है
मेरे नसीब के आसमां को सितारे भी नसीब नही है
तू नाप आसमां की ऊंचाईयों को मेरे दिल को अब मचलने की आदत नही है
रिवायते कुछ दुनिया की कुछ फ़र्ज़ की मजबूरियाँ है
कैसे चलूँ तेरी ताल पर मेरे पैरो के नीचे धरती बिछी है
तू कवि है तेरे तरन्नुम मे सपनो की फ़ुलवारियाँ खिलती है
मेरे नसीब के आसमां को सितारे भी नसीब नही है
तू नाप आसमां की ऊंचाईयों को मेरे दिल को अब मचलने की आदत नही है
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