तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
मेरी उदास चूडियाँ खनकती भी हैं तो सरगम सी लगती हैं
ये ससुराल की गलियाँ हैं यहाँ पायल भी खनकती है तो शोर सी लगती है।
सासुल कहती हैं बहु जितना पूछा जाए उतना ही कहो
ससुर कहते हैं घर की लक्ष्मी हो ज़रा आड़ मे रहा करो
नन्दी कह्ती है भाभी इतनी ज़ोर से ना हँसो
देवर कह्ता है भाभी चरण छूता हूँ बाबा से मेरे प्यार की बात करो
बलम कह्ते हैं थक के आया हूँ चलो कोई और बात करो
मन कहता है ज़रा फ़ुर्सत मिले तो छत पर जाया जाए
घूँघट की आड़ मे ही आँख भर आकाश देखा जाए
मेरी उदास चूडियाँ खनकती भी हैं तो सरगम सी लगती हैं
ये ससुराल की गलियाँ हैं यहाँ पायल भी खनकती है तो शोर सी लगती है।
सासुल कहती हैं बहु जितना पूछा जाए उतना ही कहो
ससुर कहते हैं घर की लक्ष्मी हो ज़रा आड़ मे रहा करो
नन्दी कह्ती है भाभी इतनी ज़ोर से ना हँसो
देवर कह्ता है भाभी चरण छूता हूँ बाबा से मेरे प्यार की बात करो
बलम कह्ते हैं थक के आया हूँ चलो कोई और बात करो
मन कहता है ज़रा फ़ुर्सत मिले तो छत पर जाया जाए
घूँघट की आड़ मे ही आँख भर आकाश देखा जाए
तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
मेरी उदास चूडियाँ खनकती भी हैं तो सरगम सी लगती हैं
मेरी उदास चूडियाँ खनकती भी हैं तो सरगम सी लगती हैं
सब के बीच कभी खोजती हूँ उस अल्हड़ लड़की को
जिसके सपनों में सूरज ढलता और चाँद निकलता था
जिसकी खनकती बातों से सारा घर चहकता था
जिसके सपनों में सूरज ढलता और चाँद निकलता था
जिसकी खनकती बातों से सारा घर चहकता था
तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
कैसे समझोगे तुम इस कवि मन से
भावाकुल मन की मजबूरी
सप्तपदी के सात पग में नापी जाती है
कैसे जन्म-जन्मांतर की दूरी
कैसे रंग जाती है जीवन रेखा इक पल में सिन्दूरी
भावाकुल मन की मजबूरी
सप्तपदी के सात पग में नापी जाती है
कैसे जन्म-जन्मांतर की दूरी
कैसे रंग जाती है जीवन रेखा इक पल में सिन्दूरी
तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
कह्ते हो गीत लिखते हो , मेरी याद मे आँख नम भी करते हो
पर याद किसे करते हो, जो मैं थी या जो हो गई मैं अब
उस प्यारी मूरत को, माँ बाबा की लाड्ली को किस ठौर खोजते हो
तुमको सिर्फ याद बस पल भर की वो मासूम हँसी ठिठोली
मन के रागों पर केवल व्यर्थ गीत रचते तुम
दुनियावी बातों से क्या काज तुम्हे
पर याद किसे करते हो, जो मैं थी या जो हो गई मैं अब
उस प्यारी मूरत को, माँ बाबा की लाड्ली को किस ठौर खोजते हो
तुमको सिर्फ याद बस पल भर की वो मासूम हँसी ठिठोली
मन के रागों पर केवल व्यर्थ गीत रचते तुम
दुनियावी बातों से क्या काज तुम्हे
तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
तुम आसमाँ नापते रहे और मैं धरा होती रही
तुम चंद्र्मा से चमकते रहे और मै अमावस मे खोती रही
तुम्हारे हर अश्क से हर्फ़ बनते गए और मैं मूक चीत्कार करती रही
तुम मुझे बेवफ़ा कहते गए और मैं वो इल्ज़ाम बनती गई
ढलना था मुझे तेरे प्यार भरे गीतो मे और मै उदास गज़ल बनती गई
तुम चंद्र्मा से चमकते रहे और मै अमावस मे खोती रही
तुम्हारे हर अश्क से हर्फ़ बनते गए और मैं मूक चीत्कार करती रही
तुम मुझे बेवफ़ा कहते गए और मैं वो इल्ज़ाम बनती गई
ढलना था मुझे तेरे प्यार भरे गीतो मे और मै उदास गज़ल बनती गई
तुम कवि हो आह भर भी लेते हो
मनीषा
No comments:
Post a Comment