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Wednesday, August 5, 2015

इतना ही सा तो है मेरा घर संसार

दाल चावल रोटी चपाती में
लिपटी मेरी कविता सारी
हल्दी नून और जीरे के छौंक ने
सिखाई मुझे परिभाषा सारी
उबलते दूध ने दिया मुझे दोस्ती का सार
तो पाया परसी थाली में जीवन का सार
चुटकी भर  हींग के तड़के सी पाई मैंने कशिश
कटोरी भर मीठे हलुवे सा मिला सबका प्यार
इतना ही सा तो है मेरा घर संसार
मनीषा

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