जिनकी नज़रों से देखी थी दुनिया कभी
उन्ही को नज़रे चुराते देखा है
जिनके कंधे पर रख सर रोया है ज़माना
उन्ही को आंसू छिपाते देखा है
जिनके दरवाज़े से ना लौटा था कोई हाथ खाली
उन्ही से दुनिया को दामन बचाते देखा है
जिन्होंने झेले है बदलते मौसमों को मुस्कुराते
हमने तूफानों में उन्ही पुराने दरख्तों को
लड़खड़ाते देखा है
मनीषा
उन्ही को नज़रे चुराते देखा है
जिनके कंधे पर रख सर रोया है ज़माना
उन्ही को आंसू छिपाते देखा है
जिनके दरवाज़े से ना लौटा था कोई हाथ खाली
उन्ही से दुनिया को दामन बचाते देखा है
जिन्होंने झेले है बदलते मौसमों को मुस्कुराते
हमने तूफानों में उन्ही पुराने दरख्तों को
लड़खड़ाते देखा है
मनीषा
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