मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Friday, February 24, 2012
फुर्सत
सुबह की उजली धूप और गर्म चाय का कप
ज़िन्दगी में फुर्सत के बस इतने लम्हे काफी है
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