मैं प्रतीक्षा रत थी यह जानते हुए भी
कि तुम नहीं थे इस पथ के बटोही,
पर फिर भी प्रतीक्षा थी कि
कभी राहें भटक कर
इस पथ से यूं ही मिल जायेंगी
और यह सूना पथ
किसी पदचाप से बज उठेगा
शायद इसीलिए
मैं प्रतीक्षा रत थी,
बाँधे मैंने बंदनवार
पथ पर बिछा दिए खिले हरसिंगार,
और सजाए दीपों भरा थाल
मैं प्रतीक्षा में रही खड़ी
तुम आए भी,
मेरी स्वागत तृषा बुझाने तुम आए भी
पर तब, जब पूजा के फूलों
में कंटीली झाड़ियाँ फूट आयी थी
रास्ते पर कितने ही पथिक
अपनी धूलि उतार गए थे
और बचा था
मेरे प्रतीक्षारत नैनों में
केवल स्वागत भाव
हर अपरिचित अजनबी के लिए ,
जो फेंक जाता था ,
मेरे लिए भूख मिटाने का सामान
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