जाने कैसे करती थी
माँ आती थी तो
मेरे एक कमरे को घर कर देती थी
बिस्तर की मैली चादर धो देती थी
मेरी कुरती में सितारे जड़ देती थी
जाने कैसे करती थी
जिसमे मुझको बरसों लगते हैं
हर वो काम माँ चुटकी में कर देती थी
सूखी दाल रोटी में अजब स्वाद भर देती थी
जाने कैसे करती थी
कितने बड़ी पापड़ गुझिया से वो
सारे खाली डिब्बे भर देती थी
पापा से छिपा के मेरे बटुए में
ढेर से रूपये धर देती थी
जाने कैसे करती थी
माँ जब होती थी तो
साँझ को घर जल्दी आने का मन में चाव भर देती थी
घर के द्वार पर हल्दी कुमकुम की थाप कर देती थी
पूजा घर तुलसी में मान भर देती थी
हर दिन को वह त्यौहार कर देती थी
माँ जब आती थी
साँझ को घर जल्दी आने का मन में चाव भर देती थी
घर के द्वार पर हल्दी कुमकुम की थाप कर देती थी
पूजा घर तुलसी में मान भर देती थी
हर दिन को वह त्यौहार कर देती थी
माँ जब आती थी
तो मेरे घर को मंदिर कर देती थी
मनीषा
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