सदियों से सांझी ये पीर पुरानी है
सखी तेरी और मेरी एक ही कहानी है
कुछ अश्रु तेरी आँखों के मेरी आँख में उतर आए
कलम है मेरी पर यह तेरी ज़ुबानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
मन में विक्षोभ लब पर ख़ामोशी उतारी है
सखी तूने मैंने जो झेली वही पीर बतानी है
कितने मर्यादा के ज़ेवर पहने रस्में उतारी हैं
फिर भी दाह में जलती काया की चीख सुनानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
कभी सफेद कभी लाल ओढ़नी में जो दब जाती है
उन घुटती सूखी आँखों की तडप आज बतानी है
सौ पर्दों के बीच जो घूरती उन आँखों की लौ बुझानी है
हैवानी पंजो की पकड़ से अपनी लाज छुडानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
सखी आखिर तो तेरी और मेरी एक ही कहानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
मनीषा
सखी तेरी और मेरी एक ही कहानी है
कुछ अश्रु तेरी आँखों के मेरी आँख में उतर आए
कलम है मेरी पर यह तेरी ज़ुबानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
मन में विक्षोभ लब पर ख़ामोशी उतारी है
सखी तूने मैंने जो झेली वही पीर बतानी है
कितने मर्यादा के ज़ेवर पहने रस्में उतारी हैं
फिर भी दाह में जलती काया की चीख सुनानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
कभी सफेद कभी लाल ओढ़नी में जो दब जाती है
उन घुटती सूखी आँखों की तडप आज बतानी है
सौ पर्दों के बीच जो घूरती उन आँखों की लौ बुझानी है
हैवानी पंजो की पकड़ से अपनी लाज छुडानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
सखी आखिर तो तेरी और मेरी एक ही कहानी है
सदियों से सांझी यह पीर पुरानी है
मनीषा
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