हर साल चला आता है ये दिन
हर साल सोचती हूँ
इस बार नहीं हूँगी उदास
इस बार करूंगी मुस्कुरा के तुम्हे याद
पर हर साल खुद ही चले आते हैं पलकों में ये आंसू
और दिल में एक टीस सी उठ जाती है
तब नज़र जाती है दीवार पर टंगे कैलेन्डर पर
और तारीख़ नश्तर सी दिल में उतर जाती है
साल बदले मौसम बदले
बदले जाने कितने पल छिन
बहुत कुछ बदला जीवन में भी
कुछ बीता अच्छा कुछ बीता बुरा भी
हर पल तुम याद आई
कभी लगा तुम साथ हो मेरे
कभी लगा जाने कहाँ खो गई तुम
कभी तुम्हे हंस कर याद किया
कभी तुम्हे एक बार फिर छूने का जी किया
कहते हैं जी ऐसे बिछड़ जाते है
हर साल लौट के फिर आते हैं इस दिन
देहरी पर देखने कैसे जीते हैं लोग उनके बिन
इसीलिए सोचती हूँ की इस साल मुस्कुरा कर करूं स्वागत तुम्हारा
पर ये बेईमान आंसू फिर भर ही आये हैं
तुम ध्यान मत देना इन पर
तुम आओ जब आज इस देहरी पर यहाँ से खुश ही जाना
मैं खुश हूँ तुम्हारे बिना जीवन अधूरा सा तो है
लेकिन फिर भी मैं खुश हूँ अपने आप में मैं पूरी हूँ
तुमने जो सिखाया था बताया था उस राह को थामे चलती हूँ मैं
जो रिश्ते तुमने बोए थे संजोये थे
उन रिश्तों ने सम्भाला मुझे और मैंने भी संजोये हैं कुछ नए पुराने रिश्ते
तुम्हारी और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए
तुम आओ जब आज इस देहरी पर यहाँ से खुश ही जाना
तुम ध्यान मत देना इन पर
No comments:
Post a Comment