तुमसे वायदा है मेरा
तुमसे एक नाता था मेरा
संग का, मन का
अनकहा सा
झुटला सको तो झुटला देना
भुला सको तो भुला भी देना पर याद रखना
तुम मुझ पर चाहे कितने किवाड़ बंद कर दो
चाहे जितनी दूरियां नपवा लो
खडी कर दो चाहे दीवारें और
खिंचवा लो बहुत से दायरे
बदल लो तुम चाहे कितने शहर
और मकान
मैं तुम्हारे भीतर एक आवाज़ सी
कभी यूँ ही कौंध जाऊँगी
कभी यूँही भीड़ में नज़र आ जाऊंगी, एक धोखे सी
जानती हूँ इस एहसास को
खवाब ख्याल मान कर तुम
सिर झटक व्यस्त कर लोगे स्वयं को
लेकिन तुम्हारे मन के कोने में एक वेदना बन सदा के लिए बस जाऊँगी मैं
हर डूबते और चढ़ते सूरज की लालिमा में याद आऊँगी तुम्हे
बस इतना सा एक वायदा है मेरा तुमसे
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