ज़िन्दगी की आपाधापी में कुछ रिश्ते जो हाथ से छूट जाते हैं
तन्हाइयों में अक्सर याद आते हैं
मन करता है कभी उन्हें पुकार ले, धीरे से फिर वो नाम लें
फोन की तरफ बढ़ता हाथ थम सा जाता है
भीतर बैठा कोई टोकता है "ये कोई वक़त है?"
"अभी नही फिर कभी"
"शायद कल "
और वो कल फिर नहीं आता और उम्र बीत जाती है
उस एक अधूरी बात में
उस याद में , एक चाह में
की कभी उन्हें पुकार लें
कभी तो धीरे से उनका नाम लें
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