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Saturday, November 19, 2011

एक दिन जब हम साथ होंगे



एक दिन जब हम साथ होंगे 
एक पास होंगे 
तब शायद प्यार के ढंग बदल जायेंगे
कहने के अंदाज़ बदल जायेंगे
साथ साथ होगा तब 
हमें  हर एहसास
देखेंगे हम तब एक साथ
बारिश की बूंदों से नाम होती हरी घास
और सुनेंगे साथ-साथ 
पत्तों से ढुलकती शबनम की आवाज़
गंध भरेगी माटी
हमारे भीतर साथ-साथ 
और साथ ही भीग जाएँगे
हम किसी तेज़ फुहार में
कभी बहुत सवेरे 
आँगन बुहार मैं
जब भीतर आऊंगी 
तब पाऊंगी तुमने फिर
घर बिखरा दिया है
या गीला फर्श मिट्टी से भर दिया है
मैं झुन्झुलाऊंगी  और चिल्लाऊंगी भी तुम पर
तुम तब शायद हंस दोगे 
और एक घूँट में चाय ख़तम कर
चल दोगे अपने काम पर
मन में एक गुदगुदाता एहसास लिए
कभी किसी छुट्टी के दिन रसोई में खड़े हो कर
तुम , मुझसे कुछ बनवाओगे
और फिर
मेरी ही नुक्ताचीनी भी करोगे
यूंही कभी-कभी सताओगे मुझे तुम
मुझ रूठी हुई को मनाओगे भी तुम
कभी जब दस्तक सुन मैं किवाड़ खोलूँगी'
तब हवा के भीने झोंके से तुम मिलोगे
दरवाज़े के उस पार
कितनी ही शरारते होंगी
रोज़ कितनी ही बातें होंगी
घर की दफ्तर की
अनुभवों की
नित  नई- नई नोक झोंक होगी
कभी शायद जब हम साथ होंगे 
एक पास होंगे

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 29 अप्रैल 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
    

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    1. हार्दिक धन्यवाद

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  2. हृदय को स्पर्श करती पंक्तियाँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद

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