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Friday, July 1, 2011

माँ



इन पुराने कपड़ों से अब भी तुम्हारी महक आती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
घर छूटा, दर छूटा तुम्हारी साँस छूटी हर आस टूटी
उस उदास आँगन मे बसी तुम्हारी आवाज़ आज भी बुलाती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
मेरे बचपन के हिंडोले, वो खेल खिलौने
तुम्हारा गुस्से मे मुझे धौल धर देना
वो प्यारी याद अब भी मेरी पीठ सहलाती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
बहुत लड़ती थी तुम्हारी एक बात नही सुनती थी
फिर भी तुम्हारी हामी पर तन मन से पुलकती थी
तुम्हारी स्नेह भरी नज़र अब भी मुझे हौसला देती  है
मेरी हर कथनी करनी पर तुम्हारी सहमति जड़ देती है
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
जग के किस कोने मे तलाशूँ मैं तुझे
कहाँ से मिले फिर वो फटकार मुझे
कैसे मिले तेरे आँचल की छाँह मुझे
हम माँ बेटी मे झलक कभी तुम्हारी दिख जाती है
उसकी तुतली बातें मुझे तुम्हारे संग अपनी याद दिलाती हैं
माँ आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है
मनीषा 

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