इश्क तो हो सकता है ना
खिली सी धूप हो और
हवा से एक जुल्फ बिखर जाए
एक उन्मुक्त हंसी जाने
कब मन को छू जाए
तब इश्क तो हो सकता है ना?
घोर कुहासा हो
कांपती ठंड में
लाल टोपी और सफेद मफलर में
कब कोई दो आंखे टकरा जाएं
तब इश्क तो हो सकता है ना?
किसी टपरी पर साथ बैठे
चाय के प्यालों के बीच
उठते ठहाकों में
जब मन मिल जाएं
तब इश्क तो हो सकता है ना?
किसी रेल के सफर में
किताबों के पन्ने पलटती तुम
कभी मिल जाओ
तब इश्क तो हो सकता है ना?
सड़क किनारे बातों बातों में
सामने आसमां पर
जब चांद में तुम्हारा अक्स दिखने लगे
तब इश्क तो हो सकता है ना?
भरी भीड़ में
सड़क पार करते तुम जब
मेरा हाथ थाम लो
तब इश्क तो हो सकता है ना?
अजनबी शहर में
एक दस्तक से खुलते
दरवाजे पर जब तुम मिल जाओ
तब इश्क तो हो सकता है ना?
तब एक शायर बुदबुदाया
हां शायद इश्क तो कहीं भी
कभी भी किसी से भी
हो ही सकता हैं
ये आँसा होगा बस ये शर्त मत रखना।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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