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Sunday, January 7, 2024

श्वास है तो सब है

 श्वास है तो सब है

मन धौकनी की तरह 

चलता है तो जग है

हंसना हसाना

मिलना मिलाना

रूठना मनाना

जीवन है तो सब है

फिर क्या रहता है

कुहासे सा विराना 

एक अंतहीन शून्य

अभी था सब

अब कुछ नहीं है

वस्त्र आभूषण

ढेर से आडंबर

सब बेकार

हाथ में स्पर्श का

अहसास तक नहीं

आंखों में बस विदाई 

का वो एक आखिरी पल

मन की कितनी अधूरी बातें

अधूरे से सपनों की

टूटी पांखे

है और था में कितना अंतर

एक ना भरने वाला 

खालीपन

ये सारे सूने सूने पल

आंसू पी कर लगाना

ये ज़ोर के ठहाके 

अपने खाली मन को 

देना रोज़ दिलासे

ढूंढना जीने के 

फिर रोज़ नए बहाने

सबसे कहना 

सब ठीक है 

और दिन के साथ 

उगते जाना ढलते जाना

सच सांस है तो सब है

जीने का ये कैसा अधूरा सा

सबब है।।


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू

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