श्वास है तो सब है
मन धौकनी की तरह
चलता है तो जग है
हंसना हसाना
मिलना मिलाना
रूठना मनाना
जीवन है तो सब है
फिर क्या रहता है
कुहासे सा विराना
एक अंतहीन शून्य
अभी था सब
अब कुछ नहीं है
वस्त्र आभूषण
ढेर से आडंबर
सब बेकार
हाथ में स्पर्श का
अहसास तक नहीं
आंखों में बस विदाई
का वो एक आखिरी पल
मन की कितनी अधूरी बातें
अधूरे से सपनों की
टूटी पांखे
है और था में कितना अंतर
एक ना भरने वाला
खालीपन
ये सारे सूने सूने पल
आंसू पी कर लगाना
ये ज़ोर के ठहाके
अपने खाली मन को
देना रोज़ दिलासे
ढूंढना जीने के
फिर रोज़ नए बहाने
सबसे कहना
सब ठीक है
और दिन के साथ
उगते जाना ढलते जाना
सच सांस है तो सब है
जीने का ये कैसा अधूरा सा
सबब है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
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