किसी ने रख दिया हो दुर्दिन में
जैसे कंधे पर हाथ
कुछ ऐसा ही है तुम्हारा साथ।।
परिभाषाओं में जो नहीं बंधता
मर्यादा के परे भी जो नहीं जाता
कुछ ऐसा ही है तुम्हारा साथ।
मन करता है तुम्हारी हथेली पर
अपनी हथेली रख दूं
और खेलूं तुम्हारी अंगुलियों से
और कहूं तुम बांट लो अपना दर्द।।
तुम्हारे सिर को अपनी गोद में रख कर
सहलाते हुए तुम्हारे बाल
तुम्हारी सुनूं और कुछ अपनी कहूं
दिन भर की थकन के बाद
सिर टिकाने को जो मिलता है
उस कांधे सा है तुम्हारा और मेरा साथ।
शब्दों की परिधि से अलग
कुछ अपना सा ।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
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