इस रात को खबर क्या दिन की बेचैनियों की
लम्हा लम्हा कर के गुजरती जाती है।।
रक्खी हैं पेशानी पर संभाल के उम्र की कुछ लकीरें
जिंदगी बस यूं तितर बितर सी कटती जाती है।।
उस से मिलने और बिछड़ने का सुरूर कुछ ऐसा है
दोपहर ख़ामख़ाह शाम के इंतजार में निकल जाती है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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