सच और पूरा सच कहाँ मिलता है
सिर्फ कफन ओढ़ने से कब खुदा मिलता है
खुद से कुछ इस तरह बिछड़ चुके हैं कि
अपने चेहरे पर भी अब नकाब ही मिलता है
झूठ की आदत हो चली है कुछ इस तरह
अब मिलता है सच भी तो बनावट सा लगता है
घर के चूल्हे ने बुझा दी है दिलों से सुलगती आंच
पराई आग मे हर शख्स अपनी ही रोटियाँ सेंकता दिखता है
मनीषा
सिर्फ कफन ओढ़ने से कब खुदा मिलता है
खुद से कुछ इस तरह बिछड़ चुके हैं कि
अपने चेहरे पर भी अब नकाब ही मिलता है
झूठ की आदत हो चली है कुछ इस तरह
अब मिलता है सच भी तो बनावट सा लगता है
घर के चूल्हे ने बुझा दी है दिलों से सुलगती आंच
पराई आग मे हर शख्स अपनी ही रोटियाँ सेंकता दिखता है
मनीषा
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