टूट के जुड़ने का हुनर उसे आया
तो उसके काम भी आया बहुत
हम जो बिखरे तो बस बिखर के ही रह गए
समेटना ना थोड़ा आया ना आया बहुत
उसकी याद के लम्हे ज़िंदगी से उधेड़ते
बैठे रहे
फ़लसफ़ों में जीने का सलीका ना आया
न सीखे
ज़िंदगी के थपेड़ों ने सिखाया तो बहुत
वो जो बिछड़ा तो नसीब में ना आया फिर तो उसके काम भी आया बहुत
हम जो बिखरे तो बस बिखर के ही रह गए
समेटना ना थोड़ा आया ना आया बहुत
उसकी याद के लम्हे ज़िंदगी से उधेड़ते
बैठे रहे
फ़लसफ़ों में जीने का सलीका ना आया
न सीखे
ज़िंदगी के थपेड़ों ने सिखाया तो बहुत
पीरों में मज़ारों में मन्नतों में दुआओं में
हमने उसे पुकारा तो बहुत
खाली कोरे पन्ने ज़िंदगी के
उसी के नाम से भरे जाते हैं
वो एक शख़्स जो आज निगाहे
मिलाने से भी कतराता है बहुत
मनीषा
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