हम मिलते हैं
सही गलत की सरहद के उस पार
जहां पाप और पुण्य एक हो जाते हैं
सभी परिधियों नीतियों के उस पार
जहाँ भेद विभेद मिट जाते हैं
बस तुम और मैं
स्वयं में गुम
कर्ता और कर्म से परे
कुंडलियों और सितारों के उस पार
और चलते हैं सृष्टि के साक्ष्य में
सप्तपदी के वो सात पग
और मिट जाता है फिर
तुम और मैं का यह फर्क....
मनीषा
सही गलत की सरहद के उस पार
जहां पाप और पुण्य एक हो जाते हैं
सभी परिधियों नीतियों के उस पार
जहाँ भेद विभेद मिट जाते हैं
बस तुम और मैं
स्वयं में गुम
कर्ता और कर्म से परे
कुंडलियों और सितारों के उस पार
और चलते हैं सृष्टि के साक्ष्य में
सप्तपदी के वो सात पग
और मिट जाता है फिर
तुम और मैं का यह फर्क....
मनीषा
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