बरसों की परतों में से कभी कोई फूल महक जाता है
और मेरी डायरी के पन्नो में तेरा ज़िक्र झलक जाता है
उम्र तो बीत ही जाती है लम्हे दर लम्हे में
तेरे साथ गुज़र जाती तो
कुछ और ही लुफ्त होता इस जीने में
बहुत खोया बहुत पाया है इन बीते सालों में
अब वो कशिश नहीं इन निगाहों में
कुछ तेरी सुन लेते और कुछ अपनी कह पाते तो
कुछ और ही लुत्फ़ होता आज इस मरने में
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