तुम बिछड़े हुए मीत से
मेरी इन लकीरों में पीरों को दिख जाते हो
हर कोई पूछ बैठता है किसे खो दिया था तुमने
और मन विकल सा फिर भी तुम्हे नकार जाता है
एक टूटे हुए सम्बन्ध से
तुम मेरी हथेलियों में रच गए हो, उस मेहँदी से
जो शहनाईयो की गूँज में कभी धुल गयी
उम्र भर बस एक सवाल से तुम मेरे भीतर घुमड़ते हो
उन बादलों से ओस से हर रात बरसते रहे
इन आँखों में जाने कितने पतझड़ समाए
सावन आया भी था कभी, पता ही न चला इन्हें
और अतीत में उलझे हम अपने अपने वर्तमान जीते रहे
manisha
मेरी इन लकीरों में पीरों को दिख जाते हो
हर कोई पूछ बैठता है किसे खो दिया था तुमने
और मन विकल सा फिर भी तुम्हे नकार जाता है
एक टूटे हुए सम्बन्ध से
तुम मेरी हथेलियों में रच गए हो, उस मेहँदी से
जो शहनाईयो की गूँज में कभी धुल गयी
उम्र भर बस एक सवाल से तुम मेरे भीतर घुमड़ते हो
उन बादलों से ओस से हर रात बरसते रहे
इन आँखों में जाने कितने पतझड़ समाए
सावन आया भी था कभी, पता ही न चला इन्हें
और अतीत में उलझे हम अपने अपने वर्तमान जीते रहे
manisha
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