पुरुष की कविता भिन्न होती है
कविता के पुरुष भी भिन्न होते हैं
पुरुष प्रेमी पिता भाई सहोदर सब होते हैं कविता में
पर कोमल करुण दारुण नही होते
पुरुष की कविता है
शांत धीर गंभीर कविता
दोस्ती यारी सड़कों की आवारगी की कविता
कविता में भी पुरुष कमजोर नहीं हैं
पिता अश्रु छिपा जाते हैं, प्रेमी वियोग से पागल तो हो जाते हैं
परंतु रोते नहीं हैं
ना कोमल हैं,न उलझे से
ना विलाप करते बस खामोश और चुप्प से हैं पुरुष कविता में भी
पुरुष की कविता बस वीर और बलिदानी सी खड़ी है
उनकी तरह
पुरुष की कविता भिन्न होती है
कविता के पुरुष भी भिन्न होते हैं।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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