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Thursday, February 10, 2022

फाल्गुन

 फिर आई रात फाल्गुनी

पाँव में मेहँदी रचाए

फिर आई उषा धवल ओस में नहाई 

पुष्प रंजित धरा का श्रृंगार करती 

चलता होगा नभ शिखर पर उन्मत्त

मेरे प्रांगण को नमन करता रवि


और आती होगी वही आज़ान

मस्जिद के उन्नत शिखर से

वहीं गूंजता होगा उस मंदिर से

मृदु घंटियों का आवाह्न

इन सबके बीच लेती होगी

व्यस्त ज़िंदगी अंगड़ाई


याद आती हैं बचपन की वो

मासूम गलियाँ

और छतों पर उड़ती 

पतंगों की अठखेलियां

ढलती उम्र में बेहद याद आती हैं

वो बालापन की मीठी नादानियाँ

#गुफ्तगू


मनीषा वर्मा

4 comments:

  1. यादों में बहुत कुछ बसा रहता है । सुंदर रचना ।

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  2. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।

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