बोल चाल में रहने दो
साहित्य से श्रृंगत होने दो
हर दिवस हिंदी हिंदी हो जाएगा
इसे जन मानस में बसने दो।।
सूर रसखान जयसी के पद से
निराला दिनकर के काव्य तक
शुद्ध अशुद्ध का भेद विचारकों को करने दो
शिशु मुख की बोली से आह्लादित
मातृ रस भरी लोरी के स्वर में इसे रचने दो ।
हर दिवस हिंदीं हिंदी हो जाएगा
इसे जन मानस में बसने दो।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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