घात प्रतिघात आघात
क्षण क्षण अंतर्नाद
दायरे बस केवल दायरे
मान के
मर्यादा के
अहं के
दायरे
झूठ और सिर्फ झूठ
प्यार झूठ मान झूठ
संबंध बनावट
मनुहार बनावट
कैसे जिए जाएं ये
इतने सारे बंधन
आह! अंतर्नाद मूक अंतर्नाद
दव्न्द विध्वंस दव्न्द
आह ! आह! आह!
मनीषा वर्मा
क्षण क्षण अंतर्नाद
दायरे बस केवल दायरे
मान के
मर्यादा के
अहं के
दायरे
झूठ और सिर्फ झूठ
प्यार झूठ मान झूठ
संबंध बनावट
मनुहार बनावट
कैसे जिए जाएं ये
इतने सारे बंधन
आह! अंतर्नाद मूक अंतर्नाद
दव्न्द विध्वंस दव्न्द
आह ! आह! आह!
मनीषा वर्मा
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