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Monday, October 28, 2019

कोई एक चराग़, उम्मीद का जलाया तो होता

कोई एक चराग़, उम्मीद का जलाया तो होता
मेरी तीरगी को अपनी लौ से बुझाया तो होता

बहुत दूर निकल आए, अपनी ही रौ में हम
तुमने  आवाज़ दे कर ज़रा बुलाया तो होता

क्या मुश्किल था ज़ुस्तज़ू में तुम्हारी, जां लुटा देना
था इश्क तुमको भी  कभी फ़रमाया तो होता

कर दिया  बस कलम,  जो सर झुकाया हमने
तुमने  गवाहों को अदालत में बुलाया तो होता

माना ये इल्ज़ाम, बड़े नादां नासमझ थे हम
तुमने  प्यार से  मगर समझाया तो होता

#गुफ़्तगू

मनीषा वर्मा

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