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Thursday, August 28, 2014

याद की तश्तरी में

याद की तश्तरी में चाँद परोसे बैठी हूँ
मैं दिल में एक लम्हा समेटे बैठी हूँ

तू खींच ज़मीं पर लक्ष्मण रेखाएँ
मैं सारी बेड़ियाँ खोले बैठी हूँ

तुझे सौंप कर छाँव की पनाहें
मैं आग का प्याला थामे बैठी हूँ

तुझे मंज़ूर होंगी संस्कृति की दुहाईयाँ 
मैं इतिहास जनने बैठी हूँ

मनीषा


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