हम थे क्या और क्या हो गए
इस बड़े से आसमां में खो गए।।
गिनते बैठे सिक्के वक्त बेवक्त
इस भरे बाजार में तन्हा हो गए।।
इतना रोए तेरे जाने के बाद
अब आंसू भी सूख कर ख़ाक हो गए।
बसा ली हैं इतनी दूर बस्तियां
अपने ही गली कूचे में सब गैर हो गए।।
ना था ना है कोई अपना खैरख्वाह
अपने आंगन के दरख़्त भी बाड़ हो गए।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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