वो मुझको मेरी नजर से कब देखता है
वो जब भी देखता है मुझमें आईना देखता है।।
यूं तो मालूम है उसको मेरी मजबूरियां
फिर भी मुझसे मिलने के ठिकाने देखता है।।
क्यों मिलता है वो ऐसे खुलकर मुझसे
ऐसे तो हर शख्स अपनी कैफियत देखता है ।।
कह कर भी वो कुछ कहता नही है
वो जमाने की नजर देखता है ।।
यूं तो है ये शहर उसके लिए अजनबी
वो मुझे क्यों फिर अपनों में देखता है।।
लिख कर भेजा है एक खत मेरे नाम
मुझसे बतियाने के वो बहाने देखता है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
सुन्दर
ReplyDeleteयूं तो मालूम है उसको मेरी मजबूरियां
ReplyDeleteफिर भी मुझसे मिलने के ठिकाने देखता है।।
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वाह वाह वाह बहुत सुंदर...
धन्यवाद
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