माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
जो तुम गए होली के रंग सारे कहीं उड़ गए
एक दिन में कभी इतनी तो उदासी तो ना थी
बस तुम्हारे वो ठहाके कहां गुम गए?
दिन उगता है रात ढलती है
पल पल चलता है ये जहां दुनिया रुकती तो नहीं
ये मेरे ज़हन के सारे सितारे क्यों बुझ गए ?
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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