कभी एक ग़ज़ल भी बयां नहीं करती मुझे
कभी एक मिसरे में उतर जाता हूँ मैं
वैसे तो एक बंद दरवाज़ा हूँ मैं
तेरी एक दस्तक पर भीतर तक खुल जाता हूँ मैं
नाउम्मीदगी से डगमगायी जब भी कश्ती मेरी
तेरे आसरे पर पार उतर जाता हूँ मैं
बढ़ता हूँ जो चार कदम अपनी मंजिलों की तरफ
उसकी गलियों में अक्सर भटक जाता हूँ मैं
ढूँढता फिरा जिस हमनवाज़ को दर बदर
उस को अपने ही अक्स में पा जाता हूँ मैं
मांगने जाता हूँ दुआ जो खुदा के दर तक
अपने ही अंदर उतर जाता हूँ मैं
यूँ तो कर लिया था दिल सफ़्फ़ाक मैने
फिर भी उसकी सादगी पर पिघल जाता हूँ मैं
यूँ तो मशहूर हैं ज़माने में मेरी आश्नाई के किस्से
मगर अपनों से निबाहने में अक्सर चूक जाता हूँ मैं
मनीषा वर्मा
कभी एक मिसरे में उतर जाता हूँ मैं
वैसे तो एक बंद दरवाज़ा हूँ मैं
तेरी एक दस्तक पर भीतर तक खुल जाता हूँ मैं
नाउम्मीदगी से डगमगायी जब भी कश्ती मेरी
तेरे आसरे पर पार उतर जाता हूँ मैं
बढ़ता हूँ जो चार कदम अपनी मंजिलों की तरफ
उसकी गलियों में अक्सर भटक जाता हूँ मैं
ढूँढता फिरा जिस हमनवाज़ को दर बदर
उस को अपने ही अक्स में पा जाता हूँ मैं
मांगने जाता हूँ दुआ जो खुदा के दर तक
अपने ही अंदर उतर जाता हूँ मैं
यूँ तो कर लिया था दिल सफ़्फ़ाक मैने
फिर भी उसकी सादगी पर पिघल जाता हूँ मैं
यूँ तो मशहूर हैं ज़माने में मेरी आश्नाई के किस्से
मगर अपनों से निबाहने में अक्सर चूक जाता हूँ मैं
मनीषा वर्मा
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