चाँद का मुँह टेढ़ा है अब भी माधव
रक्त का उबाल लिखने वाली कलम रिक्त पड़ी है
हवाओं में घुल चुका है ज़हन का विष
रात्रि का सन्नाटा सूरज लील गया है
कविता हास परिहास को विवश है
कवि कब का भूख से मर चुका है
Manisha Verma
रक्त का उबाल लिखने वाली कलम रिक्त पड़ी है
हवाओं में घुल चुका है ज़हन का विष
रात्रि का सन्नाटा सूरज लील गया है
कविता हास परिहास को विवश है
कवि कब का भूख से मर चुका है
Manisha Verma
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