इन्साफ को कुछ मरोङा है
इन्सान भी तो कुछ टेढ़ा है
शर्म मर गई आँखों की
आखिर हमने उसके कातिल को छोङा है
इन्सान भी तो कुछ टेढ़ा है
शर्म मर गई आँखों की
आखिर हमने उसके कातिल को छोङा है
सबने सेकी अपनी रोटी
किस्सा कुछ तेरा कुछ मेरा है
किस्सा कुछ तेरा कुछ मेरा है
वादों इरादों मे फिसल गए
दोष कुछ तेरा कुछ मेरा है
दोष कुछ तेरा कुछ मेरा है
कौन उठाए अब गाँडीव
सबको रोटी के सवाल ने घेरा है
सबको रोटी के सवाल ने घेरा है
आज खबर है पहले पन्ने की
कल तुझे रद्दी में तुलना है
कल तुझे रद्दी में तुलना है
उस पर बीते वो जाने मेरी मैं
माफ कर मुझे नींद ने घेरा है
माफ कर मुझे नींद ने घेरा है
मनीषा
No comments:
Post a Comment