एक थपकी एक दुलार
एक स्नेहिल कांधे से
याद आते हैं पापा
कभी पुचकार कभी डांट
एक मजबूत आधार से
याद आते हैं पापा
थोङे से चुप
थोङे से शौकीन
माॅ की झिङकी से
बचाते याद आते हैं पापा
मम्मी को चिढाते
हम से ही रेस लगाते
अपने गम छिपाते
मुस्कुराते याद आते हैं पापा
हमारा हौसला बढाते
हमे सौ दस्तूर समझाते
भाई की परछाई मे नजर
आते हैं पापा
मनीषा
19/06/2016
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