एक झूठ वो सुनता है
एक झूठ मैं कहती हूँ
इस तरह चलती है ज़िंदगी
सच को सुनने और कहने
की ज़रूरत नहीं
सिर्फ समझने की है
सच तो इस कैंची सा है
सब रिश्तों पर
इसलिए मूक रह जाना उचित
और फिर ज़रूरत है
एक झूठ कहने की
और एक झूठ सुनने की
और कुछ इस तरह
गुज़रती है ज़िंदगी
मनीषा
एक झूठ मैं कहती हूँ
इस तरह चलती है ज़िंदगी
सच को सुनने और कहने
की ज़रूरत नहीं
सिर्फ समझने की है
सच तो इस कैंची सा है
सब रिश्तों पर
इसलिए मूक रह जाना उचित
और फिर ज़रूरत है
एक झूठ कहने की
और एक झूठ सुनने की
और कुछ इस तरह
गुज़रती है ज़िंदगी
मनीषा
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