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Sunday, July 1, 2012

क्यों मैं गाऊँ

विश्व तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
मैं कवि क्यों तुझसे बंधने को ललचाऊँ 
तू विलासी मुट्ठी भर जीविका से
क्षण भर को तौल भर देगा मुझे
फिर क्यों अपना जीवन मैं
तुझे समर्पित कर जाऊं
बेमोल ही बिक जाऊं
क्यों तेरे अनुरोध पर कलम उठाऊं
 तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
जिनको तूने पूजा तूने माना
बिसरा बैठा तू उनकी अनमोल कहानी
जिनको तू पूजेगा तू गायेगा 
जीवित रहेगी क्या   उनकी कोई निशानी
फिर क्यों तुझे रिझाऊँ 
रूमानी सा वो गीत फिर दोहराऊँ
तेरे कहने पर क्यों कलम उठाऊँ
 तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
नश्वरता तेरी मैं पहचान पाया 
तेरे स्वार्थ को मैं जान पाया 
तू तो रुका ना सम्राटों की  समिधा पर
न रुका उस एक वस्त्रा फकीर के निस्वार्थ बलिदान पर
फिर तेरी श्रद्धा पाने को मैं क्यों ललचाऊँ
मैं कवि क्यों ह्रदय  जलाऊँ 
तेरे पाश्र्व के सुख को ललचाऊँ 
क्यों फिर कलम उठाऊं


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