विश्व तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ
मैं कवि क्यों तुझसे बंधने को ललचाऊँ
तू विलासी मुट्ठी भर जीविका से
क्षण भर को तौल भर देगा मुझे
फिर क्यों अपना जीवन मैं
तुझे समर्पित कर जाऊं
बेमोल ही बिक जाऊं
क्यों तेरे अनुरोध पर कलम उठाऊं
तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ
जिनको तूने पूजा तूने माना
बिसरा बैठा तू उनकी अनमोल कहानी
जिनको तू पूजेगा तू गायेगा
जीवित रहेगी क्या उनकी कोई निशानी
फिर क्यों तुझे रिझाऊँ
रूमानी सा वो गीत फिर दोहराऊँ
तेरे कहने पर क्यों कलम उठाऊँ
तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ
नश्वरता तेरी मैं पहचान पाया
तेरे स्वार्थ को मैं जान पाया
तू तो रुका ना सम्राटों की समिधा पर
न रुका उस एक वस्त्रा फकीर के निस्वार्थ बलिदान पर
फिर तेरी श्रद्धा पाने को मैं क्यों ललचाऊँ
मैं कवि क्यों ह्रदय जलाऊँ
तेरे पाश्र्व के सुख को ललचाऊँ
क्यों फिर कलम उठाऊं
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