जब जब उतरती है
वसुधा के अंचल पर रात नई
मन को आलोडित करती है फिर फिर बात वही
यूं तो समय ने देखी होंगी
कितनी राते नई नवेली
पर थम गया था एक पल को काल भी
देख वो मृदु छवि अनछुई
मिलन था या वो थी बिछोह की रात निर्मोही
मन आज भी उसांस भर रह जाता है
सोचता है उन नैनो में थी भी या नही बात कोई
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